गोल्डमैन सैक्स की ‘बेचने’ की सिफारिश और वोडाफोन आइडिया के एफपीओ में भागीदारी
हाल ही में, गोल्डमैन सैक्स ने वोडाफोन आइडिया (VI) पर अपनी ‘बेचने’ की सिफारिश दोहराई, जिससे निवेशकों के बीच हलचल मच गई। गोल्डमैन सैक्स का मानना है कि पूंजी जुटाने के बावजूद, वोडाफोन आइडिया अपने गिरते बाजार हिस्से को रोकने में सफल नहीं हो पाएगी।
गोल्डमैन सैक्स का विश्लेषण
गोल्डमैन सैक्स ने वोडाफोन आइडिया के शेयर का मूल्य लक्ष्य 2.2 रुपये से बढ़ाकर 2.5 रुपये कर दिया है, लेकिन उन्होंने 83% तक की गिरावट की संभावना जताई। इस रिपोर्ट के बाद, वोडाफोन आइडिया के शेयरों में 14% की गिरावट दर्ज की गई, जिससे यह चर्चा का विषय बन गया।
एफपीओ में गोल्डमैन सैक्स की भागीदारी
निवेशकों के लिए यह बेहद आश्चर्यजनक था कि जिस कंपनी पर गोल्डमैन सैक्स ने ‘बेचने’ की सिफारिश की थी, उसी के एफपीओ (फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफरिंग) में उन्होंने 11 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से 81.83 लाख शेयर खरीदे। यह विरोधाभास निवेशकों के बीच सवाल खड़ा कर रहा था।
इस विरोधाभास का कारण क्या है?
इस पूरे मामले में एक अहम बात यह है कि गोल्डमैन सैक्स ने यह निवेश खुद के लिए नहीं, बल्कि अपने विदेशी ग्राहकों के लिए किया था। ये विदेशी ग्राहक ओडीआई (ऑफ-शोर डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट्स) के जरिए भारतीय शेयर बाजारों में निवेश करते हैं। गोल्डमैन सैक्स यहां केवल एक मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा था। इसीलिए, एक ओर जहां उन्होंने ‘बेचने’ की सिफारिश की, वहीं दूसरी ओर एफपीओ में भागीदारी की।
यूबीएस का उदाहरण
वोडाफोन आइडिया के एफपीओ में गोल्डमैन सैक्स के अलावा, यूबीएस ने भी 4.45 करोड़ शेयर खरीदे थे। लेकिन बाद में यूबीएस ने अपनी 0.54% हिस्सेदारी बेच दी। दोनों ही मामलों में यह देखा गया कि ब्रोकरेज फर्में खुद के लिए निवेश नहीं कर रही थीं, बल्कि वे अपने ग्राहकों की ओर से यह निवेश कर रही थीं।
निष्कर्ष
गोल्डमैन सैक्स की ‘बेचने’ की सिफारिश और एफपीओ में उनकी भागीदारी के विरोधाभास का कारण यह है कि उन्होंने यह निवेश खुद के लिए नहीं, बल्कि अपने विदेशी ग्राहकों की ओर से किया था। वोडाफोन आइडिया के शेयरों में गिरावट की संभावना के बावजूद, ओडीआई के जरिए निवेशकों का विश्वास इस सेक्टर में बना हुआ है।