माधबी पुरी बुच और SEBI: एक विवादास्पद अध्याय
भारतीय बाजार नियामक सेबी की प्रमुख माधबी पुरी बुच पर हाल ही में कुछ गंभीर आरोप लगे हैं, जिन्होंने उनकी कार्यप्रणाली और व्यक्तिगत गतिविधियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आइए इस मामले के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझते हैं।
1. कंसल्टेंसी फर्म से राजस्व अर्जन का मामला
रॉयटर्स द्वारा समीक्षा किए गए सार्वजनिक दस्तावेजों के अनुसार, माधबी पुरी बुच ने अपने सात साल के कार्यकाल के दौरान एक कंसल्टेंसी फर्म से राजस्व अर्जित करना जारी रखा। यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि यह SEBI के नियमों के संभावित उल्लंघन का संकेत देती है। नियामक अधिकारियों के लिए यह आवश्यक होता है कि वे किसी भी ऐसे व्यवसायिक गतिविधियों में शामिल न हों, जो हितों के टकराव को जन्म दे सकती हैं।
2. हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोप
हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह के खिलाफ बुच की जांच में उनके पिछले निवेशों के कारण हितों के टकराव का आरोप लगाया है। अडानी समूह पर लगे आरोपों के बाद, सेबी ने जांच शुरू की थी। इस जांच के दौरान, हिंडनबर्ग रिसर्च ने बुच के अडानी समूह में निवेश और कंसल्टेंसी फर्मों के माध्यम से उत्पन्न राजस्व पर सवाल उठाया, जिससे यह आरोप लगाया गया कि बुच की कार्रवाईयों में निष्पक्षता नहीं थी।
3. बुच का आरोपों पर प्रतिक्रिया
11 अगस्त को, माधबी पुरी बुच ने इन आरोपों को “चरित्र हनन” का प्रयास बताते हुए खारिज कर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके पति ने 2019 में यूनिलीवर से सेवानिवृत्ति के बाद अपने कंसल्टिंग व्यवसाय के लिए इन फर्मों का उपयोग किया था। उन्होंने यह भी कहा कि इन फर्मों का खुलासा पहले ही SEBI को किया गया था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वह किसी भी हितों के टकराव से बचने के लिए पूरी तरह से पारदर्शी थीं।
4. अगोरा पार्टनर्स और अगोरा एडवाइजरी का मामला
हिंडनबर्ग रिसर्च ने बुच और उनके पति द्वारा संचालित दो कंसल्टेंसी फर्मों—सिंगापुर स्थित अगोरा पार्टनर्स और भारत स्थित अगोरा एडवाइजरी—का उल्लेख किया है। इनमें से अगोरा एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड में बुच की 99% हिस्सेदारी है, जिसने 37.1 मिलियन रुपये (लगभग $442,025) का राजस्व अर्जित किया है। यह जानकारी इस पूरे मामले को और भी जटिल बना देती है, क्योंकि इससे हितों के टकराव का स्पष्ट संकेत मिलता है।
5. 2008 की SEBI नीति का संभावित उल्लंघन
SEBI की 2008 की नीति अधिकारियों को अन्य पेशेवर गतिविधियों से लाभ प्राप्त करने से रोकती है। इस नीति के अनुसार, अधिकारियों को किसी भी लाभकारी पद धारण करने, वेतन प्राप्त करने, या पेशेवर शुल्क लेने की अनुमति नहीं है। बुच की होल्डिंग्स इस नीति का उल्लंघन करती प्रतीत हो रही हैं, जो उनके लिए कानूनी और नैतिक चुनौतियां पैदा कर सकती हैं।
6. बुच और SEBI की प्रतिक्रिया
इस मामले को लेकर माधबी पुरी बुच और SEBI के प्रवक्ता ने अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है। यह मामला SEBI और बुच दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश करता है, खासकर जब उनके पेशेवर आचरण और सेबी की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं।
निष्कर्ष
माधबी पुरी बुच पर लगे ये आरोप न केवल उनकी व्यक्तिगत साख के लिए बल्कि SEBI की साख के लिए भी एक बड़ी चुनौती हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि SEBI और बुच इस मामले का सामना कैसे करते हैं और क्या कदम उठाते हैं। जब तक पूरी स्थिति स्पष्ट नहीं होती, तब तक यह मामला नियामक क्षेत्र में एक संवेदनशील मुद्दा बना रहेगा