ये 15  चीज़े जो हर एक ट्रेडर को पता होनी चाहिए। 

ये 15  चीज़े जो हर एक ट्रेडर को पता होनी चाहिए। 

ये 15  चीज़े जो हर एक ट्रेडर को पता होनी चाहिए। 

 

  1. स्टॉक मार्किट – 

    स्टॉक मार्केट वह स्थान होता है जहाँ कंपनियों के शेयर (अंशधारिता) खरीदे और बेचे जाते हैं। यह एक प्रकार का बाज़ार है जहाँ निवेशक कंपनियों में हिस्सेदारी खरीद सकते हैं और बेच सकते हैं। स्टॉक मार्केट को दो प्रमुख भागों में बांटा जा सकता है:

 

  1. प्राइमरी मार्केट

    : यहाँ पर कंपनियां अपने नए शेयर जारी करती हैं और इन्हें निवेशकों को बेचती हैं। इस प्रक्रिया को आईपीओ (Initial Public Offering) कहा जाता है।

  2. सेकेंडरी मार्केट:

    यहाँ पर पहले से जारी किए गए शेयरों की खरीद-बिक्री होती है। निवेशक इन शेयरों को आपस में खरीदते और बेचते हैं। इस मार्केट में शेयरों की कीमतें मांग और आपूर्ति के आधार पर तय होती हैं।

 


  1. सेबी (SEBI) – 

    सेबी (SEBI) का पूरा नाम “भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड” (Securities and Exchange Board of India) है। यह भारत की एक नियामक संस्था है जो देश के प्रतिभूति बाजार को नियंत्रित करती है। SEBI का मुख्य उद्देश्य निवेशकों के हितों की रक्षा करना, प्रतिभूति बाजार के विकास को प्रोत्साहित करना और उसे नियमित करना है।

  1. सेक्टर और उसके टॉप शेयर्स –

    स्टॉक मार्केट में, “सेक्टर” का मतलब उद्योगों या व्यावसायिक श्रेणियों के समूह से है जो समान प्रकार की सेवाएं या उत्पाद प्रदान करते हैं। निवेशकों और विश्लेषकों के लिए विभिन्न सेक्टरों में विभाजित करना आसान होता है ताकि वे एक विशिष्ट उद्योग में होने वाले रुझानों और प्रदर्शन का विश्लेषण कर सकें।

 

A   बैंकिंग सेक्टर HDFC             B. आईटी –  TCS 

 

  1. इंडेक्स  –

    इंडेक्स (Index) एक वित्तीय उपकरण होता है जो शेयर बाजार में उपलब्ध विभिन्न कंपनियों के शेयरों की प्रतिष्ठा को मापता है। इसका मुख्य उद्देश्य बाजार की सामान्य दिशा और प्रवृत्तियों का पता लगाना होता है। एक इंडेक्स उस माप इकाई के रूप में कार्य करता है जिसे उसमें शामिल की गई कंपनियों के शेयरों की मूल्य पर आधारित किया जाता है। शेयर बाजार में प्रमुख इंडेक्सों में से कुछ हैं: Nifty 50, Sensex (भारत), Dow Jones Industrial Average (DJIA), S&P 500 (संयुक्त राज्य अमेरिका), FTSE 100 (ब्रिटेन), Nikkei 225 (जापान)।

इंडेक्स एक प्रमुख वित्तीय उपकरण होने के साथ-साथ, यह बाजार की सामान्य स्वास्थ्य और शेयरों के प्रवाह को समझने के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह निवेशकों को शेयर बाजार की प्रवृत्तियों के बारे में जानकारी देने में मदद करता है और उन्हें निवेश के निर्णय लेने में मदद करता है।

 

  1. स्टॉक ब्रोकर –

    स्टॉक ब्रोकर एक व्यक्ति या एक कंपनी होती है जो वित्तीय बाजारों में विभिन्न स्टॉक्स, शेयर्स, सुरक्षा, और अन्य वित्तीय प्रोडक्ट्स की खरीद-बिक्री की सेवा प्रदान करती है। ये व्यक्ति या कंपनी निवेशकों के बीच में माध्यम होती है 

 

  1. NSE और BSEstock market stockadda

    NSE और BSE भारतीय वित्तीय बाजारों के दो प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज हैं। ये दो अलग-अलग स्वतंत्र स्टॉक एक्सचेंज हैं जो भारत में स्टॉक्स, शेयर्स, और अन्य वित्तीय प्रोडक्ट्स की खरीद-बिक्री की सुविधा प्रदान करते हैं। 

 

  1. बाजार पूंजीकरण –

    बाजार पूंजीकरण (Market Capitalization) एक वित्तीय मापदंड है जो किसी कंपनी की कुल बाजार मूल्य को दर्शाता है। यह किसी कंपनी के शेयरों की कुल संख्या और उसके शेयर के वर्तमान बाजार मूल्य को गुणा करके प्राप्त किया जाता है। इसे अक्सर “मार्केट कैप” के रूप में भी जाना जाता है।

बाजार पूंजीकरण की गणना इस प्रकार की जाती है:

बाजार पूंजीकरण=कुल जारी शेयरों की संख्या×प्रति शेयर का वर्तमान मूल्य\text{बाजार पूंजीकरण} = \text{कुल जारी शेयरों की संख्या} \times \text{प्रति शेयर का वर्तमान मूल्य}बाजार पूंजीकरण=कुल जारी शेयरों की संख्या×प्रति शेयर का वर्तमान मूल्य

उदाहरण के लिए, यदि किसी कंपनी के कुल 1,00,000 शेयर हैं और प्रति शेयर का वर्तमान मूल्य ₹50 है, तो उस कंपनी का बाजार पूंजीकरण होगा:

बाजार पूंजीकरण=1,00,000×50=₹50,00,000

 

  1. केंडल – 

    स्टॉक मार्केट में “कैंडल” या “कैंडलस्टिक” एक प्रकार का चार्टिंग टूल है जिसका उपयोग स्टॉक की कीमतों का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है। कैंडलस्टिक चार्ट को 18वीं सदी में जापानी चावल व्यापारियों ने विकसित किया था और अब यह वित्तीय बाजारों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

एक कैंडलस्टिक चार्ट में प्रत्येक कैंडल एक विशिष्ट समयावधि (जैसे एक दिन, एक घंटे, आदि) की कीमत की गतिविधियों को दर्शाता है। प्रत्येक कैंडल में चार मुख्य घटक होते हैं:

  1. ओपनिंग प्राइस (Opening Price): यह उस समयावधि की शुरुआत में स्टॉक की कीमत है।
  2. क्लोजिंग प्राइस (Closing Price): यह उस समयावधि के अंत में स्टॉक की कीमत है।
  3. हाई प्राइस (High Price): यह उस समयावधि के दौरान स्टॉक की सबसे ऊँची कीमत है।
  4. लो प्राइस (Low Price): यह उस समयावधि के दौरान स्टॉक की सबसे निचली कीमत है।

उदाहरण – 1. डोजी 2.  हैमर 3. इंगुल्फिंग पैटर्न अदि |

  1. चार्ट पैटर्नं क्या  होता है –

    चार्ट पैटर्न स्टॉक मार्केट में तकनीकी विश्लेषण (technical analysis) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। ये पैटर्न स्टॉक की कीमतों और उनके मूवमेंट्स का अध्ययन करके भविष्य की संभावित कीमतों का पूर्वानुमान लगाने में मदद करते हैं। उदाहरण – 

  • हेड एंड शोल्डर्स   2.  डबल टॉप और डबल बॉटम अदि |
  1. सेगमेंट  क्या  होता है – 

    विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों या व्यापार के प्रकारों को वर्गीकृत करने के लिए किया जाता है। शेयर बाजार में मुख्यतः तीन प्रमुख सेगमेंट होते हैं:

  • इक्विटी सेगमेंट (Equity Segment):

      • इस सेगमेंट में कंपनी के शेयरों का व्यापार होता है। निवेशक कंपनियों के शेयर खरीदते और बेचते हैं, और कंपनियों के प्रदर्शन के आधार पर शेयरों की कीमतों में उतार-चढ़ाव होता है।
  • डेरिवेटिव्स सेगमेंट (Derivatives Segment):

      • इस सेगमेंट में डेरिवेटिव्स जैसे फ्यूचर्स और ऑप्शंस का व्यापार होता है। डेरिवेटिव्स वित्तीय साधन होते हैं जिनका मूल्य किसी अंतर्निहित संपत्ति (जैसे स्टॉक, इंडेक्स, कमोडिटी आदि) के मूल्य पर आधारित होता है।
  • डेट सेगमेंट (Debt Segment):

    • इस सेगमेंट में सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा जारी किए गए बांड्स, डिबेंचर्स, और अन्य ऋण साधनों का व्यापार होता है। ये साधन निवेशकों को एक निश्चित समयावधि के बाद एक निश्चित ब्याज दर पर रिटर्न प्रदान करते हैं।

इसके अलावा, कुछ अन्य विशेष सेगमेंट्स भी हो सकते हैं जैसे:

  • म्यूचुअल फंड सेगमेंट (Mutual Fund Segment): जहां म्यूचुअल फंड यूनिट्स का व्यापार होता है।
  • कमोडिटी सेगमेंट (Commodity Segment): जहां सोना, चांदी, तेल जैसी वस्तुओं का व्यापार होता है।

सेगमेंट्स का उद्देश्य निवेशकों और व्यापारियों को विभिन्न प्रकार के वित्तीय साधनों में व्यापार करने की सुविधा प्रदान करना है, ताकि वे अपने निवेश और ट्रेडिंग की जरूरतों के अनुसार सही विकल्प चुन सकें।

  1. फ्यूचर एंड ऑप्शन और एक्सपायरी   क्या  होता है – 

    फ्यूचर और ऑप्शन (Futures and Options) स्टॉक मार्केट में डेरिवेटिव्स (derivatives) के प्रमुख उपकरण हैं, जिनका उपयोग निवेशक और व्यापारी जोखिम प्रबंधन, और हेजिंग के लिए करते हैं। आइए इन दोनों को विस्तार से समझते हैं:

फ्यूचर (Futures)

फ्यूचर एक प्रकार का डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट है जिसमें दो पार्टियां एक निश्चित तारीख पर और एक निश्चित कीमत पर किसी एसेट (जैसे कि शेयर, कमोडिटी, इंडेक्स) की खरीद या बिक्री के लिए सहमत होती हैं।

  • उदाहरण: यदि आपने सोने के फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को खरीदा है, तो इसका मतलब है कि आप एक निश्चित तारीख पर सोना एक निश्चित कीमत पर खरीदने के लिए बाध्य हैं।
  • विशेषताएं:
    • लीवरेज: आप पूरे एसेट की कीमत चुकाए बिना ट्रेड कर सकते हैं।
    • जोखिम: यह अधिक जोखिम भरा हो सकता है क्योंकि कीमत में छोटा सा बदलाव भी बड़ी हानि या लाभ में बदल सकता है।

ऑप्शन (Options)

ऑप्शन भी एक डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट है, लेकिन इसमें खरीदार को अधिकार मिलता है (बाध्यता नहीं) कि वह एक निश्चित तारीख पर और एक निश्चित कीमत पर एसेट को खरीद (कॉल ऑप्शन) या बेच (पुट ऑप्शन) सकता है।

  • उदाहरण: यदि आपने एक कॉल ऑप्शन खरीदा है, तो आपके पास उस एसेट को एक निश्चित कीमत पर खरीदने का अधिकार है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है।
  • विशेषताएं:
    • प्रीमियम: ऑप्शन खरीदने के लिए आपको एक प्रीमियम का भुगतान करना होता है।
    • जोखिम सीमित: यदि कीमत आपके खिलाफ जाती है, तो आपकी अधिकतम हानि केवल भुगतान किया गया प्रीमियम होता है।

एक्सपायरी (Expiry)

फ्यूचर और ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट्स की एक निश्चित समाप्ति तिथि होती है जिसे एक्सपायरी कहते हैं। एक्सपायरी डेट वह तारीख होती है जिस दिन कॉन्ट्रैक्ट का निपटान होना चाहिए। इस दिन, फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट्स का निपटान किया जाता है और ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट्स का अधिकार समाप्त हो जाता है।

  • मासिक एक्सपायरी: अधिकतर इंडेक्स और स्टॉक ऑप्शन्स की एक्सपायरी हर महीने के अंतिम गुरुवार को होती है।
  • साप्ताहिक एक्सपायरी: कुछ इंडेक्स ऑप्शन्स जैसे कि निफ्टी और बैंक निफ्टी की साप्ताहिक एक्सपायरी भी होती है, जो हर गुरुवार को होती है।

निष्कर्ष

फ्यूचर और ऑप्शन निवेशकों को अधिक लचीलापन और जोखिम प्रबंधन के तरीके प्रदान करते हैं, लेकिन उन्हें समझदारी से और ज्ञानपूर्वक उपयोग करना चाहिए। निवेश करने से पहले इनके काम करने के तरीके और इनके जोखिमों को समझना बहुत जरूरी है।

 

  1. स्टॉक खरीदना और शॉर्ट सेलिंग  क्या  होता है – चलिए इन्हें विस्तार से समझते हैं:

स्टॉक खरीदना (Buying Stocks)

स्टॉक खरीदने का मतलब है कि आप किसी कंपनी के शेयर खरीद रहे हैं। जब आप किसी कंपनी का स्टॉक खरीदते हैं, तो आप उस कंपनी में एक हिस्सेदारी प्राप्त करते हैं। इसका मतलब है कि आप उस कंपनी के मालिक बन जाते हैं, जितनी मात्रा में आपने शेयर खरीदे हैं।

  • लाभ (Profit): यदि कंपनी अच्छा प्रदर्शन करती है और उसके शेयर की कीमत बढ़ती है, तो आप अपने शेयर अधिक कीमत पर बेच सकते हैं और लाभ कमा सकते हैं।
  • डिविडेंड (Dividend): कई कंपनियाँ अपने शेयरधारकों को लाभांश (डिविडेंड) भी देती हैं, जो कि एक नियमित आय होती है।
  • होल्डिंग (Holding): आप जितने लंबे समय तक स्टॉक रखते हैं, आपको उतने अधिक लाभ की संभावना हो सकती है, बशर्ते कि कंपनी का प्रदर्शन अच्छा रहे।

शॉर्ट सेलिंग (Short Selling)

शॉर्ट सेलिंग एक व्यापारिक तकनीक है जिसमें निवेशक उन शेयरों को उधार लेकर बेचता है जो उसके पास नहीं होते। इसका उद्देश्य शेयर की कीमत में गिरावट से लाभ कमाना होता है।

  • कैसे काम करता है (How it works):
    1. उधार लेना (Borrowing): सबसे पहले, निवेशक ब्रोकरेज के माध्यम से शेयर उधार लेता है।
    2. बेचना (Selling): उधार लिए गए शेयरों को वर्तमान बाजार मूल्य पर बेचता है।
    3. कीमत गिरने का इंतजार (Waiting for Price Drop): निवेशक इंतजार करता है कि शेयर की कीमत गिरे।
    4. वापस खरीदना (Buying Back): जब शेयर की कीमत गिर जाती है, तो वह उन्हें वापस खरीदता है।
    5. वापसी (Returning): उधार लिए गए शेयरों को वापस करता है और मूल्य अंतर का लाभ कमाता है।
  • लाभ (Profit): यदि शेयर की कीमत गिर जाती है, तो निवेशक को लाभ होता है क्योंकि उसने उच्च कीमत पर बेचा और कम कीमत पर खरीदा।
  • जोखिम (Risk): अगर शेयर की कीमत बढ़ जाती है, तो निवेशक को नुकसान होता है क्योंकि उसे उच्च कीमत पर खरीदकर वापस करना पड़ता है।

मुख्य अंतर (Key Differences)

  • उद्देश्य (Objective): स्टॉक खरीदने का उद्देश्य शेयर की कीमत बढ़ने पर लाभ कमाना होता है, जबकि शॉर्ट सेलिंग का उद्देश्य शेयर की कीमत गिरने पर लाभ कमाना होता है।
  • जोखिम (Risk): शॉर्ट सेलिंग में अधिक जोखिम होता है क्योंकि अगर शेयर की कीमत अनिश्चितकाल के लिए बढ़ती है, तो संभावित नुकसान भी अनिश्चितकाल के लिए बढ़ सकता है।

सारांश (Summary)

  • स्टॉक खरीदना: कंपनी के शेयर खरीदकर मालिक बनना और मूल्य वृद्धि या डिविडेंड से लाभ कमाना।
  • शॉर्ट सेलिंग: शेयर उधार लेकर बेचना और कीमत गिरने पर वापस खरीदकर लाभ कमाना।

इन दोनों अवधारणाओं को समझने के बाद, आप स्टॉक मार्केट में अधिक प्रभावी ढंग से निवेश कर सकते हैं और विभिन्न रणनीतियों का उपयोग करके अपने निवेश को अधिकतम कर सकते हैं।

 

  1. सपोर्ट एंड रेजिस्टेन्स क्या  होता है –   सपोर्ट और रेजिस्टेन्स स्टॉक मार्केट के महत्वपूर्ण तकनीकी विश्लेषण के टूल्स हैं, जिनका उपयोग ट्रेडर्स और निवेशक बाजार में भावनाओं और कीमतों के संभावित मूवमेंट को समझने के लिए करते हैं।

सपोर्ट (Support):

सपोर्ट वह प्राइस लेवल होता है जहाँ पर एक स्टॉक की कीमत नीचे गिरते हुए रुकती है और वापस ऊपर की ओर मूव करती है। यह वह स्तर होता है जहां पर मांग (बायर्स) इतनी मजबूत होती है कि वह कीमत को और नीचे गिरने से रोक देती है। सपोर्ट लेवल को पहचानने के लिए निवेशक चार्ट्स पर ध्यान देते हैं जहां कीमतें पहले भी नीचे जाकर रुक चुकी हैं।

रेजिस्टेन्स (Resistance):

रेजिस्टेन्स वह प्राइस लेवल होता है जहाँ पर एक स्टॉक की कीमत ऊपर जाते हुए रुकती है और वापस नीचे की ओर मूव करती है। यह वह स्तर होता है जहां पर सप्लाई (सेलर्स) इतनी मजबूत होती है कि वह कीमत को और ऊपर जाने से रोक देती है। रेजिस्टेन्स लेवल को पहचानने के लिए निवेशक चार्ट्स पर ध्यान देते हैं जहां कीमतें पहले भी ऊपर जाकर रुक चुकी हैं।

सपोर्ट और रेजिस्टेन्स का महत्व:

  1. ट्रेडिंग डिसिशन: सपोर्ट और रेजिस्टेन्स लेवल्स का उपयोग करके ट्रेडर्स अपने एंट्री और एग्जिट पॉइंट्स का निर्धारण कर सकते हैं।
  2. रिस्क मैनेजमेंट: ये लेवल्स स्टॉप-लॉस और टारगेट सेट करने में मददगार होते हैं।
  3. मार्केट सेंटिमेंट: ये लेवल्स निवेशकों के सेंटिमेंट को भी दर्शाते हैं; उदाहरण के लिए, अगर कीमतें सपोर्ट लेवल पर आकर बढ़ती हैं, तो यह दर्शाता है कि बायर्स का सेंटिमेंट मजबूत है।

कैसे पहचानें सपोर्ट और रेजिस्टेन्स लेवल्स:

  • प्राइस चार्ट्स: सबसे आम तरीका है प्राइस चार्ट्स का उपयोग करना, जिसमें निवेशक पिछले प्राइस मूवमेंट्स को देखते हैं और उन बिंदुओं को पहचानते हैं जहां कीमतें बार-बार रुकती हैं।
  • ट्रेंडलाइन्स: चार्ट्स पर ट्रेंडलाइन्स खींचकर भी सपोर्ट और रेजिस्टेन्स को पहचाना जा सकता है।
  • मूविंग एवरेज: मूविंग एवरेज लाइनें भी सपोर्ट और रेजिस्टेन्स के रूप में काम कर सकती हैं।

उदाहरण:

मान लीजिये एक स्टॉक की कीमत $50 पर आकर बार-बार ऊपर की ओर मूव करती है, तो $50 उसका सपोर्ट लेवल होगा। वहीं, अगर वही स्टॉक $60 पर आकर बार-बार नीचे की ओर मूव करता है, तो $60 उसका रेजिस्टेन्स लेवल होगा।

सपोर्ट और रेजिस्टेन्स का उपयोग सही तरीके से करने पर ट्रेडिंग में लाभकारी निर्णय लिए जा सकते हैं।

 

  1. स्टॉपलॉस  क्या  होता है –  स्टॉपलॉस (Stop-Loss) एक ट्रेडिंग टूल है जो निवेशकों और ट्रेडर्स द्वारा उपयोग किया जाता है ताकि वे अपनी नुकसान को सीमित कर सकें। यह एक पूर्व-निर्धारित मूल्य स्तर होता है जिस पर एक स्टॉक को स्वचालित रूप से बेचा या खरीदा जाता है जब वह मूल्य तक पहुँचता है।

स्टॉपलॉस का उपयोग कैसे किया जाता है:

  1. निवेश सुरक्षा: जब आप एक स्टॉक खरीदते हैं, तो आप एक स्टॉपलॉस ऑर्डर सेट कर सकते हैं जो यह सुनिश्चित करेगा कि यदि स्टॉक का मूल्य एक निश्चित स्तर से नीचे गिरता है, तो वह ऑटोमेटिकली बेच दिया जाएगा। इससे आपका नुकसान सीमित रहेगा।
  2. भावनात्मक निर्णयों से बचाव: स्टॉपलॉस का उपयोग करने से आप भावनाओं के आधार पर गलत फैसले लेने से बच सकते हैं। यह आपको आपके ट्रेडिंग प्लान के अनुसार डिसिप्लिन में रहने में मदद करता है।
  3. लाभ की सुरक्षा: यदि आपका स्टॉक अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, तो आप एक ट्रेलिंग स्टॉपलॉस सेट कर सकते हैं जो स्टॉक के बढ़ते मूल्य के साथ-साथ बढ़ता है और लाभ को लॉक करने में मदद करता है।

स्टॉपलॉस के प्रकार:

  1. फिक्स्ड स्टॉपलॉस: एक निश्चित मूल्य स्तर पर सेट किया जाता है।
  2. ट्रेलिंग स्टॉपलॉस: यह स्टॉक के मूल्य के साथ-साथ चलता है और स्टॉक के मूल्य बढ़ने पर अपने आप बढ़ता है।
  3. परसेंटेज स्टॉपलॉस: स्टॉक के मूल्य के एक निश्चित प्रतिशत पर सेट किया जाता है।

उदाहरण:

मान लीजिए आपने ₹1000 के मूल्य पर एक स्टॉक खरीदा है और आप अधिकतम ₹50 का नुकसान सहने के लिए तैयार हैं। आप स्टॉपलॉस को ₹950 पर सेट कर सकते हैं। अगर स्टॉक का मूल्य ₹950 तक गिरता है, तो आपका स्टॉक अपने आप बेच दिया जाएगा, और आपका नुकसान ₹50 पर सीमित हो जाएगा।

स्टॉपलॉस एक महत्वपूर्ण उपकरण है जो ट्रेडर्स और निवेशकों को बड़े नुकसान से बचाने और उनके पोर्टफोलियो की सुरक्षा में मदद करता है।

  1. Forex   ट्रेडिंग और Commodity ट्रेडिंग  क्या  होता है  –   Forex ट्रेडिंग और Commodity ट्रेडिंग दोनों ही वित्तीय बाजारों में विभिन्न प्रकार की व्यापारिक गतिविधियों को संदर्भित करते हैं:
  1. Forex ट्रेडिंग (Foreign Exchange Trading): इसमें विदेशी मुद्राओं का व्यापार किया जाता है। यह बाजार विशेष रूप से विभिन्न देशों की मुद्रा के बीच की विनिमय दरों पर आधारित होता है। उदाहरण के लिए, एक व्यापारी अमेरिकी डॉलर (USD) को यूरो (EUR) में बदल सकता है और इस प्रकार का व्यापार कर सकता है। Forex ट्रेडिंग मुख्यतः विदेशी विनिमय दरों के परिवर्तनों पर निर्भर करती है।
  2. Commodity ट्रेडिंग: यह विभिन्न वस्त्रादि उत्पादों के व्यापार पर आधारित है। इनमें क्रूड ऑयल, सोना, चांदी, गेहूं, तेल आदि शामिल हो सकते हैं। Commodity ट्रेडिंग के माध्यम से व्यापारी वस्तुओं की खरीददारी और बिक्री करते हैं और इसका मुख्य उद्देश्य विनिमय दरों में होने वाले परिवर्तन का लाभ उठाना होता है।

इन दोनों बाजारों में व्यापार करने वाले लोगों का मुख्य लक्ष्य होता है कि वे मुद्रा या वस्तुओं की मूल्य में होने वाले अनुमानित बदलाव का लाभ उठा सकें। इन बाजारों में व्यापार करने के लिए व्यापारिक ज्ञान, वित्तीय समझ, और ताजगी से जुड़ा रहना आवश्यक होता है।

ये 15  चीज़े जो हर एक ट्रेडर को पता होनी चाहिए। 

 

 

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