मोदी-ट्रंप की बैठक
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत आयात शुल्क बढ़ने से भारत के आईटी, फार्मा और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के चलते भारत को ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति के तहत एक नया अवसर मिल सकता है। यदि अमेरिका भारत को चीन का बेहतर विकल्प मानता है, तो इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में तेजी देखी जा सकती है।
रक्षा क्षेत्र में भारत-अमेरिका साझेदारी
भारत और अमेरिका के बीच रक्षा क्षेत्र में सहयोग को लेकर अहम बातचीत हो सकती है। अमेरिका भारत से हथियारों की खरीद बढ़ाने पर जोर दे सकता है।
अगर इस बैठक में कोई बड़ा रक्षा समझौता होता है, तो इससे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL), भारत डायनेमिक्स और लार्सन एंड टुब्रो (L&T) जैसी कंपनियों को लाभ हो सकता है।
भारत F-35 लड़ाकू विमान खरीदने पर विचार कर सकता है, जिससे भारतीय वायुसेना की क्षमताएं मजबूत होंगी।
चीन से सस्ते सामानों की डंपिंग पर चर्चा
चीन द्वारा भारत में सस्ते सामानों की भारी आपूर्ति (डंपिंग) के कारण घरेलू विनिर्माण कंपनियों को नुकसान हो रहा है।
यदि इस बैठक में इस समस्या के समाधान के लिए ठोस कदम उठाए जाते हैं, तो भारतीय उद्योगों को मजबूती मिल सकती है और “मेक इन इंडिया” अभियान को बढ़ावा मिलेगा।
आईटी और फार्मा क्षेत्र के लिए नीतिगत सुधार
भारत के आईटी और फार्मा उद्योग अमेरिका में बड़ी भूमिका निभाते हैं, लेकिन इन क्षेत्रों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
H-1B वीज़ा नीति भारतीय आईटी पेशेवरों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। भारत की ओर से अमेरिका से वीजा और नियामकीय बाधाओं को आसान बनाने की मांग की जा सकती है, जिससे इन क्षेत्रों की कंपनियों को व्यापार करने में आसानी होगी।
डॉलर और स्थानीय मुद्रा के बीच संतुलन
बैठक में अमेरिकी डॉलर की मजबूती और स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को लेकर चर्चा हो सकती है। भारत, रूस और चीन के साथ रुपये में व्यापार बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
यदि इस विषय पर कोई ठोस निर्णय लिया जाता है, तो इसका प्रभाव विदेशी मुद्रा बाजार और रुपये के मूल्य पर देखा जा सकता है।