बोलिंजर बैंड क्या होता है और उपयोग कैसे करते है
what is Bollinger band?
Bollinger Bands एक बेहद लोकप्रिय तकनीकी संकेतक हैं जो निवेशक और ट्रेडर्स उपयोग करते हैं ताकि बाजार की अस्थिरता (volatility) का विश्लेषण कर सकें। यह संकेतक न केवल कीमतों की गतिविधि को समझने में मदद करता है, बल्कि इससे बाजार में होने वाले संभावित बदलावों के बारे में भी जानकारी मिलती है। आइए जानते हैं कि Bollinger Bands कैसे काम करता है और इसे अपनी ट्रेडिंग रणनीतियों में कैसे शामिल किया जा सकता है।
Bollinger Bands के घटक
Bollinger Bands तीन मुख्य घटकों से मिलकर बनते हैं
- Middle Band (मध्य बैंड) यह 20-दिन की मूविंग एवरेज होती है, जो किसी सिक्योरिटी की औसत कीमत को दर्शाती है।
- Upper Band (ऊपरी बैंड) यह 20-दिन की मूविंग एवरेज से 2 स्टैंडर्ड डिविएशन ऊपर स्थित होता है, जो अधिक खरीदी गई स्थिति (overbought) को दर्शाता है।
- Lower Band (निचला बैंड) यह 20-दिन की मूविंग एवरेज से 2 स्टैंडर्ड डिविएशन नीचे स्थित होता है, जो अधिक बेची गई स्थिति (oversold) का संकेत देता है।
ये तीनों बैंड्स मिलकर एक चैनल बनाते हैं जो किसी स्टॉक की कीमत को ऊपर और नीचे सीमित करता है। Bollinger Bands बाजार में कीमतों के असाधारण रूप से ऊपर या नीचे जाने की संभावना का अंदाजा लगाने में मदद करता है।
Bell Curve और Bollinger Bands का संबंध
Bollinger Bands की नींव सांख्यिकी के bell curve सिद्धांत पर आधारित है। Bell curve यह दर्शाता है कि किसी डाटा सेट में अधिकांश डाटा औसत (mean) के करीब होता है, जबकि कुछ डाटा अत्यधिक ऊपर या नीचे होता है। बाजार की कीमतें भी सामान्यतः औसत के करीब होती हैं, लेकिन कभी-कभी कीमतें बहुत ऊपर या नीचे चली जाती हैं। यही वह स्थिति होती है जब Bollinger Bands के ऊपरी और निचले बैंड महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
जब कीमतें ऊपरी बैंड तक पहुँच जाती हैं, तो माना जाता है कि वे अधिक खरीदी गई हैं (overbought) और गिरने की संभावना बढ़ जाती है। वहीं, जब कीमतें निचले बैंड तक पहुँचती हैं, तो वे अधिक बेची गई होती हैं (oversold) और उनके ऊपर जाने की संभावना रहती है।
Bollinger Bands के साथ ट्रेडिंग रणनीतियाँ
1. The Squeeze (स्क्वीज़)
Squeeze वह स्थिति होती है जब Bollinger Bands एक-दूसरे के करीब आ जाते हैं। इसका मतलब यह होता है कि बाजार में वोलैटिलिटी कम हो रही है और जल्द ही एक बड़ा मूवमेंट आने की संभावना है।
ट्रेडर्स Squeeze के बाद उत्पन्न ब्रेकआउट की दिशा में ट्रेड करते हैं। अगर पहला कैंडल ऊपरी बैंड के ऊपर बंद होता है, तो यह संकेत होता है कि कीमतें ऊपर जाने वाली हैं। यदि कैंडल निचले बैंड के नीचे बंद होती है, तो कीमतें नीचे जा सकती हैं।
2. Buy the “W” & Sell the “M”
Bollinger Bands का उपयोग W और M पैटर्न की पहचान करने में भी किया जा सकता है। जब कीमतें निचले बैंड को छूती हैं, फिर ऊपर जाती हैं, और फिर से निचले बैंड के पास आती हैं, तो यह W पैटर्न बनाती हैं, जिससे खरीदारी का अवसर होता है। इसके विपरीत, जब कीमतें ऊपरी बैंड को छूती हैं, नीचे आती हैं, और फिर से ऊपरी बैंड तक पहुँचती हैं, तो यह M पैटर्न बनता है, जो बेचने का संकेत होता है।
3. Walking the Bands
जब बाजार एक ट्रेंड में होता है, तो कीमतें लगातार Bollinger Bands के साथ चलती हैं। इस स्थिति को “Walking the Bands” कहा जाता है। यदि कीमतें ऊपरी बैंड के साथ बनी रहती हैं, तो यह बाजार में तेजी का संकेत होता है। वहीं, अगर कीमतें निचले बैंड के साथ चलती हैं, तो बाजार में गिरावट का संकेत होता है। यह रणनीति मजबूत ट्रेंड वाले बाजार में उपयोगी होती है।
निष्कर्ष
Bollinger Bands एक महत्वपूर्ण तकनीकी संकेतक है जो वोलैटिलिटी और ट्रेंड्स को समझने में मदद करता है। इसका उपयोग सही ढंग से करने पर यह संकेतक ट्रेडिंग में बढ़त दिला सकता है। हालांकि, इसे अन्य तकनीकी संकेतकों के साथ मिलाकर उपयोग करना हमेशा बेहतर होता है ताकि अधिक सटीक निर्णय लिए जा सकें।