रुपया ऐतिहासिक निचले स्तर पर 2 साल की सबसे बड़ी गिरावट
सोमवार को भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 86.5825 के स्तर पर बंद हुआ, जो इसकी 0.7% गिरावट के साथ पिछले 2 वर्षों की सबसे बड़ी गिरावट है। रुपये में यह कमजोरी ग्लोबल इकोनॉमिक ट्रेंड्स और विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली के कारण देखने को मिली।
डॉलर इंडेक्स और अमेरिकी अर्थव्यवस्था का असर
- डॉलर इंडेक्स का उच्चतम स्तर
- अमेरिकी डॉलर इंडेक्स अपने दो साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है।
- हाल ही में जारी अमेरिकी जॉब रिपोर्ट उम्मीद से बेहतर रही, जिससे यह संभावना बढ़ गई है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व अपनी ब्याज दरों को लंबे समय तक ऊंचा रख सकता है।
- ऊंची ब्याज दरों के कारण विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से अपना पैसा निकालकर अमेरिकी बाजारों में निवेश कर रहे हैं, जिससे रुपये पर दबाव बना हुआ है।
- विदेशी निवेशकों की बिकवाली
- चालू वित्त वर्ष में अब तक विदेशी निवेशकों ने 4 बिलियन डॉलर से अधिक की बिकवाली की है।
- इस बिकवाली से भारतीय बाजार में भारी गिरावट आई है, जिससे रुपये की विनिमय दर और कमजोर हो गई है।
RBI का हस्तक्षेप और विदेशी मुद्रा भंडार में कमी
- RBI का समर्थन
- रुपये की अधिक गिरावट को रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर की बिक्री की है।
- इस कदम से भले ही रुपये को थोड़ी राहत मिली हो, लेकिन विदेशी मुद्रा भंडार में 70 बिलियन डॉलर की कमी हो गई है।
- भविष्य की रणनीति
- यदि रुपये में कमजोरी जारी रहती है और बाजार में अस्थिरता बनी रहती है, तो RBI को अतिरिक्त कदम उठाने की आवश्यकता हो सकती है।
- हालांकि, अपने घटते विदेशी मुद्रा भंडार को देखते हुए RBI बहुत सावधानीपूर्वक हस्तक्षेप करेगा।
- यदि केंद्रीय बैंक द्वारा तात्कालिक कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दिनों में रुपये में और कमजोरी देखने को मिल सकती है।
रुपये में गिरावट से संभावित असर
- महंगाई पर असर
- कमजोर रुपया आयातित वस्तुओं जैसे कच्चे तेल, इलेक्ट्रॉनिक सामान, और औद्योगिक उपकरणों की लागत बढ़ा देगा, जिससे महंगाई बढ़ने की आशंका है।
- व्यापार घाटा (Trade Deficit)
- भारत, जो एक बड़ा कच्चे तेल और सोने का आयातक है, कमजोर रुपये के कारण अधिक डॉलर खर्च करेगा, जिससे ट्रेड डेफिसिट बढ़ सकता है।
- विदेश में पढ़ाई और यात्रा पर असर
- विदेश में पढ़ाई कर रहे छात्रों और ट्रैवल करने वालों को भी ज्यादा खर्च करना पड़ेगा क्योंकि कमजोर रुपया उन्हें अधिक डॉलर खरीदने के लिए मजबूर करेगा।