US-China ट्रेड वॉर
अमेरिका और चीन के बीच चल रहा टैरिफ युद्ध एक नया मोड़ ले चुका है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सख्त नीति के जवाब में चीन ने अपनी रणनीति को और धारदार बना लिया है। चीन की स्पष्ट प्रतिक्रिया – “झुकेगा नहीं साला” – केवल शब्द नहीं, बल्कि उसकी सख्त राजनीतिक और आर्थिक स्थिति का संकेत है।
टैरिफ की लड़ाई कौन पहले झुकेगा?
ट्रम्प प्रशासन ने चीन पर 145% तक टैरिफ लगा दिए हैं। इसके जवाब में चीन ने भी 125% तक काउंटर टैरिफ्स लागू कर दिए हैं।
अमेरिका ने बाकी देशों के लिए 90 दिनों की टैरिफ छूट दी है, ताकि यह संकेत दिया जा सके कि उसका असली निशाना केवल चीन है। वहीं, शी जिनपिंग ने अमेरिका की नीति को “एकतरफा दबदबा” करार देते हुए साफ कहा कि चीन किसी भी दबाव में नहीं झुकेगा।
टेक प्रोडक्ट्स पर छूट अपने ही हितों की रक्षा?
कुछ उपभोक्ता उत्पाद जैसे स्मार्टफोन, कंप्यूटर और लिथियम-आयन बैटरियों पर टैरिफ से छूट दी गई है। यह संकेत है कि अमेरिका अपने ही टेक्नोलॉजी ब्रांड्स — जैसे Apple, Dell, और Nvidia — को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता। ये छूट दरअसल उन कंपनियों के लिए हैं जिनकी बिक्री का बड़ा हिस्सा चीन से आता है।
आखिर क्यों नहीं झुक रहा चीन?
1. अमेरिकी निर्भरता सीमित है
हालांकि अमेरिका चीन का एक बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है, लेकिन निर्यात का हिस्सा चीन की GDP में महज़ 2% है। इसका मतलब है कि यह एक झटका है, पर जानलेवा नहीं।
2. मजबूत घरेलू व्यवस्था
चीन के पास विशाल घरेलू बाजार और सरकारी रिलीफ पैकेज हैं। साथ ही Belt and Road Initiative (BRI) के जरिए नए अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुँच बनाई जा रही है।
3. आत्मनिर्भरता की नीति
शी जिनपिंग ‘Made in China 2025’ जैसी नीतियों के ज़रिए टेक्नोलॉजी सेक्टर में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। खासतौर पर सेमीकंडक्टर और डिफेंस सेक्टर में फोकस है।
4. राष्ट्र गौरव और राजनीतिक स्थिरता
यह लड़ाई केवल व्यापार की नहीं, बल्कि राष्ट्रीय प्रतिष्ठा की है। चीन के लिए झुकना न तो घरेलू मोर्चे पर स्वीकार्य है और न ही वैश्विक मंच पर।
5. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अहम भूमिका
चीन मानता है कि ग्लोबल सप्लाई चेन में उसकी भूमिका इतनी केंद्रीय है कि टैरिफ का बोझ आखिरकार अमेरिकी उद्योगों और उपभोक्ताओं पर ही पड़ेगा।
क्या चीन बहुत अधिक आत्मविश्वास में है?
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चीन को वैश्विक सप्लाई चेन में हो रहे बदलावों को हल्के में नहीं लेना चाहिए। भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएं इस शून्य को भरने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
भारत अब केवल सस्ते लेबर मार्केट के रूप में नहीं, बल्कि एक भरोसेमंद विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। हाल ही में चीन ने भारत से संबंध बेहतर करने के संकेत भी दिए हैं। चीनी एम्बेसी की प्रवक्ता Yu Jing ने S. जयशंकर की वीडियो साझा कर कहा कि भारत-चीन को मिलकर अमेरिकी टैरिफ नीति का जवाब देना चाहिए।
यूरोप और विकासशील देशों से समर्थन की कोशिश
चीन ने यूरोपीय यूनियन से आग्रह किया है कि वे अमेरिका की “एकतरफा दबदबा नीति” का विरोध करें। साथ ही अफ्रीका और दक्षिण एशिया में इन्फ्रास्ट्रक्चर और ट्रेड डील्स के ज़रिए अपनी पकड़ मजबूत की जा रही है।
क्या सुलह की कोई संभावना है?
Backdoor डिप्लोमेसी के जरिए कुछ टैरिफों में छूट दी जा सकती है, लेकिन यह प्रक्रिया बहुत संवेदनशील और अस्थायी हो सकती है। ट्रम्प पर भी घरेलू महंगाई, शेयर बाजार की गिरावट और सप्लाई चेन की गड़बड़ी का दबाव है, जिससे वे कुछ कदम पीछे ले सकते हैं।
ट्रम्प की रणनीति में कमी?
टैरिफ नीति से अमेरिका में निवेशकों का भरोसा कमजोर हुआ है, डॉलर की स्थिति डगमगाई है, और खुद अमेरिकी अरबपति इसकी आलोचना कर रहे हैं। टेक उत्पादों पर छूट देना संकेत है कि अमेरिका भी दबाव महसूस कर रहा है।
चीन की रणनीति टारगेटेड अटैक
चीन ने अमेरिकी किसानों और स्मॉल इंडस्ट्रीज पर फोकस करते हुए टैरिफ लगाए हैं, जिससे सीधे तौर पर ट्रम्प के वोट बैंक पर असर पड़ता है।
बीजिंग फिलहाल दबाव में जरूर है, लेकिन झुकने के मूड में नहीं है।
निष्कर्ष कौन जीत रहा है – ड्रैगन या ईगल?
US-China ट्रेड वॉर का अंत कब और कैसे होगा, यह कहना फिलहाल मुश्किल है। लेकिन यह तय है कि दोनों देशों की नीतियाँ अब केवल आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक भी हो चुकी हैं। आने वाले महीनों में यह संघर्ष ग्लोबल इकॉनमी की दिशा तय करेगा।