स्टॉकैस्टिक ऑसिलेटर क्या है ?
1950 के दशक में, Dr. George C. Lane ने स्टॉकैस्टिक ऑसिलेटर नामक एक तकनीकी संकेतक विकसित किया। यह संकेतक किसी संपत्ति की कीमत में होने वाले उतार-चढ़ाव को मापता है, जिससे इसकी गति का आकलन होता है। यह धारणा है कि कीमत में परिवर्तन से पहले गति में परिवर्तन होता है, और इसी आधार पर स्टॉकैस्टिक ऑसिलेटर का विकास हुआ।
स्टॉकैस्टिक ऑसिलेटर कैसे काम करता है?
स्टॉकैस्टिक ऑसिलेटर एक निश्चित समय अवधि में एक संपत्ति की समापन कीमत की तुलना उच्चतम और न्यूनतम कीमतों की रेंज से करता है। सामान्यतः, इसे 14-दिन की अवधि में मापा जाता है, और इसका मान 0 से 100 के बीच होता है। यह संकेतक इस बात का संकेत देता है कि कीमत उच्च या निम्न स्तर के कितना करीब है।
स्टॉकैस्टिक ऑसिलेटर का संकेत क्या होता है?
इसका मुख्य उपयोग ओवरबॉट और ओवरसोल्ड संकेतों का आकलन करने में होता है। यदि स्टॉकैस्टिक मान 80 से ऊपर हो, तो यह ओवरबॉट स्थिति होती है, और 20 से कम होने पर ओवरसोल्ड स्थिति को इंगित करता है। यह संकेत संभावित मूल्य उलटफेर का सुझाव देता है।
स्टॉकैस्टिक चार्ट की संरचना
स्टॉकैस्टिक चार्ट में दो प्रमुख लाइनें होती हैं। पहली लाइन ऑसिलेटर का वास्तविक मान दिखाती है, और दूसरी लाइन उस मान का 3-दिन का मूविंग एवरेज होती है। जब ये लाइनें एक-दूसरे को पार करती हैं, तो संभावित ट्रेडिंग सिग्नल उत्पन्न होते हैं, जैसे कि %K लाइन का %D लाइन को पार करना एक ट्रेंड रिवर्सल का संकेत हो सकता है।
स्टॉकैस्टिक ऑसिलेटर और RSI के बीच संबंध
RSI (Relative Strength Index) एक और संकेतक है जो स्टॉकैस्टिक से मिलती-जुलती प्रवृत्ति दिखाता है। कई व्यापारी इन दोनों संकेतकों को एक साथ उपयोग करके खरीद या बिक्री संकेत की सटीकता बढ़ाते हैं। दोनों संकेतक समान उद्देश्य के होते हुए भी अलग सिद्धांत पर आधारित होते हैं।
ट्रेडिंग में स्टॉकैस्टिक ऑसिलेटर का उपयोग
स्टॉकैस्टिक ऑसिलेटर को अक्सर ट्रेडिंग रणनीति में रिवर्सल संकेतों, ओवरबॉट/ओवरसोल्ड स्थितियों, और विचलन संकेतों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसे दिन-प्रतिदिन के व्यापार और स्कैल्पिंग में एक सहायक उपकरण के रूप में अपनाया जा सकता है। इस ऑसिलेटर से प्राप्त संकेत को अन्य तकनीकी संकेतकों के साथ जोड़ना एक विवेकपूर्ण विचार है।
सामान्य गलतियाँ जिन्हें टालना चाहिए
कुछ सामान्य गलतियाँ जो नए ट्रेडर करते हैं, उनमें प्रमुख हैं
- ओवरसोल्ड स्थिति में खरीदारी करना, क्योंकि इसमें गिरावट जारी रह सकती है।
- हर विचलन को संभावित उलटफेर मानना, जबकि यह संकेत गलत भी हो सकते हैं।
निष्कर्ष
स्टॉकैस्टिक ऑसिलेटर एक महत्वपूर्ण तकनीकी संकेतक है जो ओवरबॉट और ओवरसोल्ड स्थिति का संकेत देता है। लेकिन इसके साथ ही RSI और अन्य तकनीकी संकेतकों का उपयोग करना समझदारी है ताकि ट्रेडिंग संकेतों की सटीकता बढ़ सके।